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Sunday 7 June 2015

दर्जन भर कॉपियां


याद आया आज स्कूल वाला जून जुलाई का महीना,
ख़त्म होती थी जब गर्मी की छुट्टियां,
पापा के साथ लाते दर्जन भर कॉपियां,
लाते बड़े नाप की नयी नवेली यूनिफॉर्म |

नया बस्ता नयी बोतल,
कॉपियों के पसंदीदा लेबल,
चार रंगों वाला पेन और अप्सरा की पेंसिल,
बारिश में स्कूल जाने कि होती चहल पहल |

सौंधी सी नयी क़िताबो की महक,
दोस्तों से मिलने की अभिलाषा की चहक,
छुट्टियों के किस्सों वाली बातों की खनक,
नयी क्लास में साल बिताने की ललक |

स्कूल बस में साथियों का शोर,
 सुबह असेंबली में प्रार्थना कि कतार,
करते हर रोज़ रविवार का इंतज़ार,
देखते दूरदर्शन पर तरंग और चित्रहार ||
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अब होता है हर महीना एक समान,
ना किताबें ना उनके लेबल,
बस कीबोर्ड पर दौड़ती उंगलियां और ऑफ़िस की टेबल,
ना बजती छुट्टी की घंटियाँ |

ना भोर कि ख़बर ना डूबते सूरज पर नज़र,
अब कब होती है सहर और ढलता है दिन किस पहर,
ना ख़ुशनुमा मौसम, ना त्यौहार सा रविवार,
ना यूनिट टेस्ट का भार, ना टीचर की डांट का शिकार ||

Monday 6 April 2015

शख़्सियत


इस कदर लोगो को हँसाना मेरी आदत ना समझो,
हर क़दम रिश्ते बनाने की इसे शिद्दत ना समझो |

खुदगर्ज़ी है मेरी और मुझे खुदगर्ज़ समझो,
मेरे जनाज़े में चलने वालो की तादात बढ़ाने की कोशिश समझो ।|

Sunday 29 March 2015

ना सोचा है


किस ओर चलूं ना सोचा है,
किस ठोर थमु ना सोचा है,

चलते रहूँ या राह चुनूं,
मंज़िल कि तलाश करूँ,
या खड़ी रहूँ चौराहों पे,
किस ओर बढ़ूँ ना सोचा है |

आसमां को भर लूँ मुट्ठी में,
या छोड़ दूँ खुली हाथ कि लकीरों को,
ज़िद करूँ क्या लड़ने कि,
क्या हाल चुनूं ना सोचा है | 

दिल तोड़ चलूँ या मन जोड़ चलूँ,
रुख मोड़ चलूँ या जग छोड़ चलूँ,
दो कदम चलूँ या दौड़ चलूँ,
या ख्वाब चुनूं ना सोचा है ||

Saturday 3 January 2015

ना सीखी होशियारी...

होशियारी मिलती नहीं बाज़ार में,
समझदारी बिकती नहीं दुकान पे,
मिले ग़र दुनियादारी का ठेकेदार,
हम होंगे उसके पहले खरीददार|


Thursday 1 January 2015

नव वर्ष की शुभकामनाएँ

साल तो बहुत आए बहुत गए,
आशा है ये साल बीते हुए हर साल से खूबसूरत हो जाए,
लिए सभी के प्रति सौहाद्र और सुकून कि भावनाएँ |

सबका जीवन बेहतर स्वास्थ्य और हर्ष से भर आए,
पूर्ण हो हर जन की मनोकामनाएँ,
नव वर्ष की सबको शुभकामनाएँ |

Sunday 9 November 2014

खामोशी में भी शोर सा है


है ये ढलता हुआ सूरज, मगर दिखता सुनहरी भोर सा है,
खामोशी में भी शोर सा है,

है ये धुँधला कोहरा, मगर दिखता ठंडी ओस सा है,
खामोशी में भी शोर सा है,

है ये मज़बूत बंधन, मगर दिखता कच्ची डोर सा है,
खामोशी में भी शोर सा है|

Thursday 30 October 2014

लम्हा

ये लम्हा भी यूँ ही बीत जायेगा,
अगला लम्हा भी कौनसा साथ निभायेगा,
भर लो हर लम्हा अपनी बाहों में,
क्या पता, कौनसा लम्हा आखरी कहलायेगा ||

Saturday 18 October 2014

फिर से दिवाली आयी है


फिर से दिवाली आयी है,
फिर बाज़ार में रौनक छायी है,
फिर माँ दीये जलायेंगी,
फिर पापा सीरीज़ लगायेंगे,

फिर से दिवाली आयी है,
फिर रातें दिन से ज़्यादा रौशन हो जायेगी,
फिर घर आँगन में रंगोली सजेगी,
फिर किचन से घी कि खुशबू हर कमरे में फैल जायेगी,

फिर से दिवाली आयी है,
फिर नए कपड़ों कि महक मन को बहलायेगी,
फिर नन्हे शैतान पटाखे-फुलझड़ी जलायेंगे,
फिर पकवान और तोहफे ख़ुशियाँ लायेंगे

Thursday 2 October 2014

प्रिय मच्छर


वो गुनगुनाना तुम्हारा, वो मीठी सी तान,
छु लेती थी मेरे कानों के तार सच मान,

आते थे तुम जब नजदीक,
मांगती थी मैँ नींद कि भीख,

सुनाते थे तुम नित नए गीत,
याद है तुम्हारा वो मधुर संगीत,

जगा देते थे गहरी नींद से मुझे,
तब ही आता था चैन तुझे |

अब क्यूँ समझ ना आती आहट तुम्हारे आने की,
सज़ा कैसे दूं तुम्हें चुपके से काट जाने की,

डंक मार कर चले जाते हो, मन में ही मुस्काते हो,
रंगे हाथों पकड़ु कैसे तुम तो उड़ जाते हो, 

हो गए अब तुम भी चतुर चालाक,
आ जाओ बस एक बार मेरे हाथ,

किया है मैंने तुम्हे रक्तदान,
उफ्फ... क्यूँ बन रहे तुम अनजान !

Friday 26 September 2014

चंचल मन





चंचल मन है नटखट ऐसा,

कभी भागता इक ओर, कभी दौड़ता उस छोर,

इसके खालीपन में गुंजित होती एक आस कहीं,

भर जाता उल्लास से अगले पल बस यूँ ही |


नाचता है मद भरे मोर सा कभी,

कराहता गम भरे अनाथ सा कभी,

कैसे जताये इस पर अपना अधिकार,

ये ना करता हमारी इच्छा अभिसार ||













Saturday 20 September 2014

राज़



लफ्जों से गूफ्तगू में बेपरवाह वो ख़ुद को धोखा दे जाते हैं,

लाख कोशिश कर ले महफूज़ रखने की,

बेमानी करती हैं उनकी पलकें,

झुकते हुए हर राज़ से पर्दा उठा देती हैं

Saturday 13 September 2014

प्रतीक्षा

हवाई अड्डे पर अगली घोषणा कि प्रतीक्षा में बैठी राधिका कि असली प्रतीक्षा खत्म हुई जब उसके पीछे से शरारत भरी आवाज़ आयी - "तुम्हारा गुड्डा आज भी मेरे पास है |" सामने कान्हा था- उसके बचपन का मित्र | वह मुस्कुराते हुए बोला -"मैने कहा था ना, एक दिन मैं हवाई जहाज़ उड़ाउंगा | "

इस अप्रत्याशित अनुभव से राधिका कि आँखें नम हो गयी, वह कुछ जवाब ही नहीं दे पायी | अपनी भावना व्यक्त कर पाती उसके पहले ही विमान के उड़ान कि घोषणा हो गयी और कान्हा चला गया |


बरसों कि आरज़ू सामने हो तो दिल कि कसक मिट जाती है,
पलकों में भर आता है समंदर खुशियों का
|
जो शब्दों में बयान हो वो
एहसास ही क्या,
कुछ एहसास बयान करने में अनेक अल्फाज़
कम पड़ जाते है |


--------- कुछ घंटों बाद ---------

विमान 
के उड़ान के दौरान मंद-मंद मुस्कान लिए हुए राधिका के कानों में कान्हा की आवाज़ गूँज रही थी | मानो उसके कानों में किसी ने शहद घोल दिया हो, या जैसे मधुर संगीत बज रहा हो ! 

कोई वादा नहीं फिर भी एक इंतज़ार है,
रिश्तो 
की डोर पर एतबार है |
हर एक रिश्ते का कोई नाम नहीं होता,
हर एक रिश्ते का अंजाम नहीं होता |


अचानक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया | सब तहस नहस हो चुका था, सारे यात्री घायल थे | लोगों कि दर्द भरी चीखें हर ओर थी | कहीं खून बह रहा था, कहीं रुदन कि ध्वनि | राधिका बेहोश थी, पैर मलबे में दबे हुए थे | जब आँखें खोली तो उसे अपनी दृष्टि पर विश्वास ना हुआ, कान्हा के मृत शरीर को ले जाया जा रहा था |

अगले ही पल, आखरी साँस के साथ राधिका ने जवाब दिया - "मैंने भी कहा था ना, मुझे हवाई जहाज से गिरा मत देना.... ये प्रतीक्षा अब कभी खत्म ना होगी" 

वह बिना सुने ही चला गया |


--------- 5 साल पहले 
---------

गर्मी का मौसम था | एक दिन मामा के घर कि सफाई करते हुए कान्हा अचानक बेहोश हो गया | मामी बहुत कोसती थी, कहती, "इस अनाथ को जब से घर लाये हो हमारी तकलीफें बढ़ गयी है | इतना कमजोर है, कोई काम ठीक से नहीं करता | "मामी उसे दिन में एक बार ही भोजन देती थी |

बेचारा कभी उफ तक नहीं करता | अपने बचपन के सपने को साकार करने के लिए खूब मन लगा कर पढाई करता था | 

अक्सर ख़ुदा अपने बंदो का इम्तेहान लेता है,
ग़र दर्द दिया हैं तो मरहम भी वो ही देता हैं |


--------- 7 साल पहले ---------

अपने माता पिता के साथ रह कर कान्हा शहर में अच्छा जीवन व्यतीत कर रहा था | पढाई में भी होशियार था | दुर्भाग्य से उसके माता पिता कि मृत्यु एक सड़क हादसे में हो गयी | उसके मामा अपनी बहन कि आखरी निशानी, 
कान्हा को अपने घर ले आए थे | उसे बहुत प्यार देते | परन्तु मामी उनके इस निर्णय से अत्यन्त हर्षित न थी |

--------- 2 साल पहले ---------

आज कान्हा कि जिंदगी में बरसों बाद ख़ुशियाँ लौटी थी | मामा भी बहुत प्रसन्न थे, उनका भांजा विमान-चालक (पायलट) जो बन चुका था |

उसके साथ एक विश्वास था - अपने माता पिता के आशीर्वाद का, अपने मामा के प्रेम का और अपनी बचपन कि दोस्त राधिका कि मित्रता का |

ज़िंदगानी हसीन हो जाती है, ग़र दिल से फरियाद करो,
हैं रात तो सुबह का इंतज़ार करो,
वक्त और नसीब पर एतबार करो,
उम्मीद का दीया रौशन लगातार करो |


कान्हा ने हर संभव प्रयत्न किया कि वह राधिका को ये शुभ सूचना दे सके, परन्तु वह असफल रहा | आठ साल से उन दोनो कि बात ना हो पायी थी | गांव में सूखा पड़ने के कारण राधिका का परिवार दूसरे गांव जा कर रहने लगा था | इसलिए उनसे संपर्क नहीं हो पाया |

 --------- आज का दिन ---------

राधिका का भाई विदेश में रहता था | रक्षाबंधन पर अपनी बहन से मिलने कि इच्छा से उसने लिए हवाई जहाज़ के टिकट भेजे थे | 


पहली बार शहर आयी सहमी-
सी राधिका हवाई अड्डे पहुँची | वहां की गतिविधियों की जानकारी ना होने के कारण पास बैठे एक यात्री से बात कर रही थी | उसकी नजरें कुछ ढूँढ रही थी, मानो उसे आभास हो गया हो के उसकी प्रतीक्षा अब खत्म होने वाली हैं |

 --------- 10 साल पहले ---------

आसमान में उड़ते हुए हवाई जहाज़ को देखते हुए वो बोला - "एक दिन मै हवाई जहाज उड़ाउंगा" | बदले में राधिका चिढ़ाते हुए बोली, मुझे गिरा मत देना अपने हवाई जहाज़ से! "

नदी किनारे कयी पहर दोनों साथ बैठे रहते | खूब खेलते, ढेर सारी बातें करते | ना जाने इतनी बातें कहां से आती उनके पास | साथ होते तो वक्त का होश ही नहीं रहता |

राधा रानी और श्री कृष्ण कि ही तरह राधिका बारह वर्ष की, और कान्हा ग्यारह का, राधिका का रंग गोरा और कान्हा का साँवला, राधिका भोली और कान्हा नटखट | 


वो मासूम बचपन,
वो नटखट शरारत,
वो मीठी नोक झोंक,
वो रूठना मानना,
वो गुड्डे गुड़ियों का खेल,
वो भोर कि रौशनी,
वो साँझ कि हवाएँ,
वो चाँदनी रात में तारे गिनना,
वो गिनती भूल जाना,
काश हमेशा साथ निभाता,
वो मासूम बचपन |



अगली शाम, मध्यम कद काठी का वो अबोध बालक साइकिल के पहिये को एक लकड़ी से घुमाता हुआ अपने पिताजी के साथ राधिका के घर पहुँचा | राधिका कि कजरारी आँखें और मोरपंख-सी पलकें उस दिन भीग गयीं जब उसे ज्ञात हुआ के उसका परम मित्र और उसका परिवार शहर जा रहे हैं | कान्हा के पिताजी का तबादला हो गया था | रुआंसा चेहरा लिए वह सब सुनती रही | 

गांव से निकलते वक्त कान्हा को राधिका ने अपना प्रिय मिट्‍टी का गुड्डा तोहफे में दिया | अक्सर उसे ले कर दोनों में मीठी तकरार होती थी | दबी आवाज़ में बोली, "इसे सदा साथ रखना " |

"मैं तुमसे मिलने कि प्रतीक्षा करूँगी |" इतना कहते हुए वो दौड़ कर अपने घर कि ओर गयी और किवाड़ बंद कर लिया | कान्हा ने तेज़ आवाज़ में उत्तर दिया - "मैं भी...." | वह बिना सुने ही चली गयी |

छोटी-सी आयु में उन्हे कहां ज्ञात था - "राधा और कृष्ण का मिलन भी कभी हुआ हैं भला ! "

Sunday 7 September 2014

तुम्हारे बिना



तुम्हारे बिना मेरा जीवन,
जैसे जलेबी बिना पोहे,
जैसे मलाई बिना चाय,
जैसे कंकड़ बिना चावल,
जैसे टपकती हुई आइसक्रीम||

तुम्हारे बिना मेरा जीवन,
जैसे सास बिना सीरियल,
जैसे address बिना पिन कोड,
जैसे  मेक-अप बिना हीरोइन||

तुम्हारे संग मेरा जीवन,
जैसे बारिश संग मेंढक,
जैसे हार्न संग स्कूटर,
जैसे सरकार संग भ्रष्टाचार||

तुम्हारे संग मेरा जीवन,
जैसे बाल संग टकला,
जैसे फॉल संग साड़ी,
जैसे पंखे संग हवा,
जैसे मोबाइल संग व्हाट्सएप्प (Whatsapp)|


Friday 22 August 2014

वर्जनाएँ


मैं सब वर्जनाएँ तोड़ना चाहती हूँ,
माँ के गर्भ में खत्म नहींं होना चाहती हूँ,

ज़हरीले भुजंग से लिपटे तन पर,
उन हाथों को तोड़ना चाहती हूँ,

पाषण सी पड़ती निगाहें मुझ पर,
उन आंखों को फोड़ना चाहती हूँ,

बांधती जो गिरहें मुझ पर, कह कर इसे मुकद्दर,
उस संवेदनशून्य मनोवृत्ति का अंत देखना चाहती हूँ,

मेरे पाकीज़ा दामन को कलंकित कर,
क्रीड़ा की वस्तु मात्र नहीं बनना चाहती हूँ,

त्याग, क्षमा, ममता व देवी कि प्रतिमा का उपसर्ग जो दे मुझे,
उस अक्षम्य समाज कि वर्जनाएँ अब तोड़ना चाहती हूँ

Friday 15 August 2014

बातें


कुछ लोग करते हैं, कुछ नही,
कुछ लंबी होती हैं, कुछ छोटी,

कुछ चकित करती हैं, कुछ हर्षित करती हैं,
कुछ ख्वाब में होती हैं, कुछ एहसास में,

कुछ आंखों से होती हैं, कुछ ज़ुबान से,
कुछ दिल से होती हैं, कुछ दिमाग से,

कुछ अनकही होती हैं, कुछ कहकहे लाती हैं,
कुछ हम सुनते हैं, कुछ अनसुनी करते हैं,

कुछ मासूम होती हैं, कुछ कर्कश,
कुछ स्पष्ट होती हैं, कुछ दोहरी,

कुछ से समय बीतता है, कुछ समय के साथ बीत जाती हैं,
कुछ दिल को छु लेती हैं, कुछ रूह को तोड़ देती हैं,

कुछ हो जाती हैं, कुछ यूँ ही खो जाती हैं,
कुछ सवाल छोड़ जाती हैं, कुछ जवाब बन जाती हैं...

Saturday 2 August 2014

नीर

कभी है यह निर्मल, निरभ्र, निर्झर, नटखट,
कभी खो जाता हो अकस्मात निश्चल, नीरव, निर्जल,

नदी बन कर बहता कल-कल,
तृप्त करता जन - जन कि क्षुधा बेकल,

सागर में भर जाता जैसे नीलम,
स्पर्श करता क्षितिज द्वारा नील गगन,

बह जाता नयन से हो निर्बल,
जैसे हो पावन गंगाजल,

प्रकृति के क्रोध का बनता माध्यम,
ले जाता जीवों का जीवन, भवन और आँगन,

धो देता कभी अस्थि के संग मानव पापों का भार,
गिरता धरा पर कभी बन रिमझिम बूँदों का दुलार,

देश विदेश कि सीमा से अपार,
यहां वहां बहता सनातन सदाबहार

Sunday 15 June 2014

ख्वाबों का शहर

नम आँखों से जब अपने ख्वाबों को पूरा करने मैं अपने घर से दूर चलने लगा, वो सड़क बड़ी छोटी लगने लगी, ऐसा लगा काश वो सड़क खत्म ही ना हो. अपने साथ यादों का कारवाँ ले के चला था मैं. यूँ लगा उन सब यादों कि जुदाई सही ना जायेगी और घर के सामने कि वो सड़क लंबी हो जायेगी.

मेरे घर के हर कोने से मेरी अनेकों यादें जुड़ी थीं. चलते वक्त मन को बहलाने के लिए माँ कि बात याद आ गयी. उनने चिढ़ाते हुए कहा था की जहां मै जा रहा हूँ वहा इससे भी बड़ा घर होगा. अगले ही पल मन ने कहा - घर दीवारों से नहीं उसमें रह रहे लोगो से बनता है.

मन में भारीपन लिए पहुँच गया अपने ख्वाबों के शहर, उस सुंदर आलीशान घर के आगे मेरा अपना घर छोटा दीख पड़ता था,  फिर सोचा माँ जान कर बड़ी खुश होंगी!

उस अनजान नगरी में हर किसी के साथ कोई ना कोई था, आपस में हँसते-बोलते रहते और मै अकेला उन्हें तांकता रहता.

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उस भीड़ में मेरी नजर दो दोस्तों पर पड़ी. उनका वो मासूम-सा तकरार और अगले ही लम्हें में ढेर सारा दुलार, मानो एक दुसरे के साथ है तो दुनिया से कोई सरोकार ही नहीं. एक तरफ़ उन्हें देख कर खुशी हुई और फिर मेरे सबसे ख़ास दोस्त का ख्याल कर के दुःख.

कभी लगता था यहाँ से भाग निकलूँ, किंतु मेरे ख्वाब मुझे पीछे खींच लेते थे. उस तन्हाई के आलम में ख़ुद ही को समझा लिया करता था. दिन गुजरते गए. एक दिन माँ का ख़त आया, उनके जन्मदिन पर एक दिन के लिए घर बुलाया था. फिर क्या था, एक पंछी कि तरह उड़ चला अपने आशियने में. मेरे शहर कि गलियों कि वो महक, घर में घुसते ही माँ कि प्यारी-सी मुस्कान, पिताजी का दुलार और बहन का शरारत भरा झगड़ा - 'भैया, तुम खाली हाथ तो नहीं आ गए ना'! ऐसा लगा ख़ुद को फिर से पा लिया. जन्मदिन मनाने के बाद अपने ख़ास दोस्त से मिलने गया. खूब बातेंं कर अपना मन हलका किया.

हर्षित मन के साथ लौट आया अपने ख्वाबों के शहर, इस बार दुगने उत्साह के साथ!

मोह पाश से इंसान कभी नहीं छूट सकता, मगर चलते रहने का नाम ही ज़िंदगी है ना!

Sunday 11 May 2014

मेरी माँ


कितनी भोली कितनी प्यारी है मेरी माँ,
मुझको हर पल मीठी डांट लगाती है मेरी माँ,
मुझको जीने का ढंग सिखाती है मेरी माँ,
मुझको चोट लगे तो ख़ुद दुःख पाती है मेरी माँ,

ऊपर जिसका अंत नहीं, उसे कहते हैं आसमां,
जहान में जिसका अंत नहीं, उसे कहते हैं माँ,
उनकी ममता कि छाओं में,
जाने कब खड़ी हुई मैं अपने पांव पे,

नींद अपनी भूला कर सुलाया जिसने,
आँसू अपने गिरा कर हंसाया जिसने,
इतना दुलार कहाँ से लाती हैं मेरी माँ,
कितनी भोली कितनी प्यारी है मेरी माँ

HAPPY MOTHER'S DAY MUMMY

Sunday 13 April 2014

बड़ी हठीली ये रात

बड़ी हठीली ये रात,
मधुर गजलों का है साथ,


गिराते हुए पलकों के पर्दे,
बुला रही है निंदिया रानी,
मंद मुस्कान लिए ये होँठ,
कह रहे थम जा तू ऐ रात,
बड़ी हठीली ये रात,


अंधियरे में फैला सन्नाटा,
टिक टिक करता घड़ी का काँटा,


दबे पाँव ही सही सवेरा तो आना है,
तेरी विदाई का क्षण तो आना है,
कुछ पल ठहर जा ऐ रात,
बड़ी हठीली ये रात,


एक नई रौशनी का होगा साथ,
जब बीत जायेगी तू ऐ रात,
खूबसूरत होगी वो सहर,
अनेक आशाओं को समेटे गोद में,
आ जायेगी वो सहर,
बड़ी हठीली ये रात,
मधुर गजलों का है साथ


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Monday 20 January 2014

तसवीरें

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तसवीरें, यादों का आइना होती है,
वक्त को ख़ुद में किये ये क़ैद,
कभी गुद्गुदाती हैं,
और कभी आँसू दे जाती हैं,
कभी छोड़ जाती हैं एक मीठी मुस्कान,
और कभी दे जाती हैं बीते लम्हों को फिर जीने कि चाह,
ये गुजरते पलों को थाम लेती हैं,
ये ही तो हैं जो हमेशा साथ निभाती हैं


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