मैं.. मैं एक बेटी हूँ, बहन हूँ, माँ हूँ और सहेली भी..
खिलती हुई कली सी मैं, सपने बुनती परी सी मैं,
विभिन्न रूपों में करते हो मेरी पूजा, सरस्वती, लक्ष्मी या दुर्गा,
अगर करते हो देवी का सम्मान, फिर क्यूँ करते हो मेरा ही अपमान,
मैं एक बेटी हूँ, बहन हूँ, माँ हूँ और सहेली भी..
मन से हूँ चंचल, हृदय से कोमल,
कहते हो मैं हूँ अनमोल, फिर क्यू नहीँ करते मेरा मोल,
मुझसे ही सब कुछ है, पर मैं ही कुछ नहीँ,
जीवन देना मेरा कर्तव्य है, तो क्या जीना मेरा अधिकार नहीँ,
मैं एक बेटी हूँ, बहन हूँ, माँ हूँ और सहेली भी..
सितारों को छूने के ख्वाब है मेरे, क्या ये रह जायेंगे यूँ ही अधूरे,
सोने के पंखों से उडने कि आशा है, पर सह्मी सी मेरे जीवन कि परिभाषा है,
हर पल करती हूँ मैं इंतज़ार, मेरे ख्वाबों को कैसे करूँ साकार,
मैं एक बेटी हूँ, बहन हूँ, माँ हूँ और सहेली भी..
करती है दुनिया दुराचार, कहती है क्यूँ गयी तुम लक्ष्मण रेखा पार,
मैं एक बेटी हूँ, बहन हूँ, माँ हूँ और सहेली भी..
-By Mansi Ladha