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Friday 31 March 2023

हर घर शबरी







सुबह उठी, बेटे के स्कूल का लंच बॉक्स बनाया,
सोच चख लूं, मिर्च ज़्यादा हुई तो भूखा लौट आएगा,

पति जॉगिंग कर के घर आये, संतरे का जूस बनाया,
सोचा चख लूं, कहीं खट्टा तो नहीं बना ,

दोपहर का भोजन बनाया, लगा दाल में नमक कम हो गया होगा,
सोचा चख लूं, कहीं सबको पसन्द ना आई तो,

बेटा स्कूल से वापिस आया, पकौड़े की फरमाइश करी,
बनाते हुए सोचा चख लूँ, ठीक से पका या नहीं,

शाम की चाय का समय हुआ, किसी को अदरक चाहिए किसी को शक्कर कम,
सबकी चाय थोड़ी थोड़ी चख लेती हूं, कहीं उनके मुँह का स्वाद ना बिगड़ जाए,

रात का भोजन जब बना, साथ मे सलाद भी काटा,
सोचा चख लेती हूं, कहीं फिर से कड़वा खीरा तो नहीं खरीद लायी,

सुबह बनी हुई खीर पति ने बड़े शौक से खाई, शाम को भी खाने वाले होंगे,
सोचा चख लेती हूं, कहीं गर्मियों की वजह से खराब ना हो गयी हो।

दोपहर में दही जमाने के लिए रखा था, कल सबको लस्सी पीनी है,
सोचा चख लेती हूं, कहीं खट्टा तो नहीं हो गया,


हमारे भारतीय परिवारों में हर घर में माँ, पत्नी, बहु शबरी ही तो है। जो घर के सदस्यों के भोजन को पहले बेर की तरह चख लेती है। इससे वह आश्वस्त हो जाती है कि उसका परिवार सुरक्षित, स्वस्थ और भोजन से प्रसन्न है। और यही विश्वास परिवार जनों को अपनी शबरी पर है।

यह कविता उन समस्त शबरी रूपी महिलाओं को समर्पित।

Tuesday 8 November 2022

Fairy Tale Blues




I wanted to be a poet,
To be able to create my own rhymes,
And perhaps write infinitely by the river side,
Alas, I am so decked up and can never find time,

I wanted to be a chef,
And perhaps be the queen of fine dine,
A mistress of spices, and a fierce baker,
Alas, the knives and tongs don't want to be mine,

I wished I could travel to a distant land,
And magically be back in a pinch,
A genie vase in my hand and wishes fulfilled at my finger tips,
Alas, here I am, captivated in the little room,

I wanted to own a kingdom,
Glass heels and velvety pillows for leisure, 
Pearls and pleasures at my disposal,
But my castle is empty and my crown falls each time,

I wished to be a soldier,
Slaying the evils who betray the mankind,
Chasing the knights on horses and march in pride,
But look at me, I am imprisoned in the shackles of the little mine,

I wanted to be on forest excursions,
Sleep under the starry skies and savour the sunshine gleam,
Amidst the enchanting rivers and dense flaura,
Alas, there are no blooms to lift the gloom,


In this tiny world,
I could do anything but not everything,
I could be anywhere but not everywhere!




Friday 6 May 2022

माँ, कब तक सबके लिए जिया करोगी



कब तक सबके लिए जिया करोगी,
ज़िन्दगी अपने हिस्से की कब चखोगी,

बच गया तो खा लिया वरना ख़ुद के लिए सलाद कौन काटेगा,
सेहत तुम्हारी भी है ज़रूरी, ये कोई न तुम्हें समझायेगा,

याद रखती हो हमेशा, की कोई पकौड़े नहीं खाता, कोई सेब से मुंह चुराता,
फिर कैसे भूल जाती हो ख़ुद अपनी पसंद नापसन्द,

काटो तरबूज़, डालो अंगूर,
अपनी भी थाली सजाना ज़रूर,

परोसती हो बड़े उत्साह से सबको भोजन,
ख़ुद की भी लगाओ एक प्यार वाली थाली,

सबकी सेहत का रखती हो ध्यान,
क्या आज भी ना रखा ख़ुद की दवाई का मान,

कोई नहीं है आज चाय पीने वाला,
ये सोच कर न लगाना ख़ुद की चाह पर ताला,

सुबह सबसे पहले और रात को आखरी तक काम में मगन,
कभी तुम भी sunday को पढ़ो अखबार करो आराम,

दौड़ते भागते ठहरा करो, कभी चैन से बैठा करो,
ख़ुद को सवारा करो, आईने में ख़ुद को निहारा करो,


कब तक सबके लिए जिया करोगी,
ज़िन्दगी अपने हिस्से की कब चखोगी।

Thursday 3 March 2022

मैं ही तो हूँ



तुम्हारे जीवन का आधार हूँ मैं,
कभी बेटी तो कभी माँ हूँ मैं,

मुझसे ही तुम्हारी भक्ति पूरी है,
भूलना नहीं शिव की शक्ति हूं मैं,

कृष्ण की बांसुरी पर नृत्य करती गोपी हूँ मैं,
क्रोधित हो कर महिषासुर मर्दिनी भी बनी हूँ मैं,

अहिल्या बन हुई पत्थर, द्रौपदी बन लगी दाव पर,
सीता बन समायी भूमि में, स्वर्ण सी निखरी हर अग्निपरीक्षा में,

गुड्डे गुड़ियों के खेल रचाती तुम्हारे आंगन में,
मुझसे ही तुम्हारा कन्यादान का पुण्य सम्पूर्ण है,

सुनी है मुझ बिन कलाई तुम्हारी,
रक्षा करने का वचन मुझ बिन अधूरा है,

नवजीवन की नन्ही कोपल को सवारती अपने अंदर मैं,
मेरे उस असहनीय दर्द के बिना तुम्हारी पहली मुस्कान अधूरी है,

खरोच लगी जब घुटनों को तुम्हारे,
एक आंसू मेरी पलकों के कोने से भी उतरा है,

काले मोती पहने गले में तुम्हारे लिए,
मेरे सिंदूर ने लगाया तुम्हारी आयु पर पहरा है,

अन्नपूर्णा रूप में बहाती पसीना रसोई में,
तब जा कर भोजन का चटकारा तुमनें लिया है,

दुःख के हर आँसू में तुम्हारे,
कतरा खून का मेरा भी बहा है,

बिना मेरे तुम्हारा मकान कभी घर ना बन पाता,
जिसे जन्नत कह कर विश्राम तुमने किया है,

निश्छल निर्मल निरन्तर बहती मैं जीवन की धारा में,
निर्भीक हो कर विभिन्न रूपों में रहती इस धरा में।

Wednesday 2 February 2022

सर्दियों का भोजन - परम् सुख




सर्दियों के मौसम में खाने का आनंद कुछ ऐसा है...

उस पीली मक्के की रोटी से जब सरसों के साग को उठाते हैं, क्या गज़ब कलर कॉम्बिनेशन नज़र आता है,

गर्मा गरम गोभी के पराठों पर तैरता हुआ मक्ख़न मन को जो लुभाता है, स्वाद की इन्द्रियों को वो जगाता है,

अदरक वाली चाय में जब काली मिर्च पड़ जाती है, बिस्कुट भी बड़े प्रेम से उसमे डुबकी लगता है,


हरे चने की कचोरी पर जब पढती है खट्टी मीठी इमली और ताज़े धनिया की तीख़ी चटनी, परम् सुख वो कहलाता है,


गर्म जलेबी से तरती हुई चाशनी, उसके केसरिया रंग को निखरती है और हमारी आँखे उसे निहारती है,


आलू बड़े में से जब नाज़ुक से मटर छुप कर हमें देखते हैं, लगता है मानो हमें पुकार रहे हो,


गाजर का हलवा भी कहाँ पीछे रह पाता है, दूध मलाई , मेवे में सिकाई और वो सौंधी सी खुशबू जीवन का सार बताता है,


तिल तिल कर बढ़ते ठंड के दिनों में तिल गुड़ की मिठास मुँह में घुल कर स्वास्थ्य बढ़ा जाती है,


केसर बादाम का दूध जब एक ग्लास से दूसरे ग्लास में और फिर पहले ग्लास में मिलाया जाता है, मन कहता है उसकी नज़र उतारी जाना तो बनता है,


गर्मा गर्म कुरमुरे मसालेदार गराडू जब प्लेट मे इठलाते है, हमारे मन को मंत्र मुग्ध कर जाते है,


सर्दियों मे खाने के जो आनंद आते है उसका कोई तोड़ नहीं, जीवन के परम सुखों मे सर्वप्रथम है यही।

Sunday 14 November 2021

बचपन




याद आता है बचपन का वो फ़साना

ना रोने का कारण ना हंसने का बहाना,


कागज़ की नाव बना कर बारिश में नहाना,

ठंड में ढूंढना स्कूल ना जाने का बहाना,


भाई बहन के झगड़े में रिमोट का टूट जाना,

"super mario" को टीवी में कुदाना,


दीवाली के पटाखे बीस दिन पहले से जलना,

होली पर पानी की पिचकारी में भी आनंद था सुहाना,


ना सुबह की खबर, ना शाम का ठिकाना,

थक कर स्कूल से आना, फिर भी बाहर खेलने जाना,


ना youtube की swiping ना PS 4 के बटन दबाना,

चित्रहार, महाभारत, तरंग के इंतज़ार में चहकना,


छोटी सी साईकल पर फेरी लगाना,

गुड्डे गुड़िया और गिल्ली डंडे का खेल लगता सुहाना,


नया पेंसिल बॉक्स आने पर चार दिन खुशियां मनाना,

स्कूल में बर्थडे पर क्लास में टॉफ़ी बांटना,

Wednesday 2 June 2021

एक प्याली चाय






ज़िन्दगी भी चाय की ही तरह है,
घूंट घूंट कर इसे पी लीजिए,

शक्कर की मिठास का लुत्फ़ उठाना है,
तो दूध सा निर्मल हो लीजिए,

इलाइची का सुकून, अदरक का तीखापन मिलता है इसमें,
ऐसे ही सुख दुख की कुल्हड़ छलकाते रहिये,

मिलने दीजिये कड़क चायपत्ती भी,
धैर्य रखें, फिर रंग और स्वाद का कमाल देखिये,

तपिश आएगी जाएगी समय समय पर,
उबाल आने तक इंतज़ार कर लीजिए,

छन छन कर मुश्किलें थम जाएंगी,
फिर प्याला भर आनंद ले लीजिए,

सोच विचार चिन्ता फिकर में क्यों बिताएं पल,
सामने रखी चाय ना ठंडी होने दीजिए,

कप, प्याली, कुल्हड़ या गिलास चाहे जिसमें पी लीजिये,
जीने का तरीका अपना अनोखा चुन लीजिए,

बिस्कुट और पकोड़े साथ हो ना हो,
ये अकेली भी कहाँ बुरी है पी लीजिए,

अपनों संग ठहाके लगाएं, सुख दुख बांट लीजिए,
चाय की चुस्कियों संग रिश्तों की बहार सजा लीजिए।

Thursday 18 March 2021

माँ का जन्म




जब एक बच्चा जन्म लेता है,
तब माँ का भी जन्म होता है,

कैसे उसे सुलायें,
कैसे नहलाएं,
पेट भरा या नहीं कैसे जान पाएं,
भूखा तो नहीं कैसे बतलायें,

इतना क्यों रोता है,
ठीक से क्या वो सोता है,
कितनी डरी सहमी वो रहती है,
आख़िर माँ भी तो अभी जन्मी होती है,

इंजीनियर डॉक्टर बनने में सालों लग जाते हैं,
कोचिंग और इंटर्नशिप भी करवाते हैं,
माँ को तो सीधा परीक्षा में ही बैठते हैं,
योग्यता और तैयारी के प्रश्न कहां आते हैं,

पूरा जीवन वो मातृत्व सीखने में लग जाती है,
लेकिन हर पल नवजात सी वो घबराती है,
सवालों के जवाब आजीवन देती जाती है,
कटघरे में खड़ा ख़ुद को पाती है,

बच्चा क्यों दुबला है, क्या ठीक से नहीं खिलाती हो,
परीक्षा में कम अंक आये, क्या उसे नहीं पढ़ाती हो,
इतनी व्यस्त रहती हो क्या बच्चे पर ध्यान दे पाती हो,
तुमने उसे बिगड़ा है, क्यों नहीं आंख दिखाती हो,

अपने परों को समेट कर उसने आँचल बनाया है,
माँ ने ख़ुद को भुला कर उसे अपनी पहचान बनाया है,
अपने मन की तरंग को विराम उसने लगाया है,
तब जा कर उसने माँ के रूप में जन्म को सार्थक बनाया है।

Monday 8 March 2021

Being Me


Being the flawless mother,
And a sublime partner,

A cook, advisor, and a teaser,
Crazy and hazy nagger,

From the weekend laundry,
And the weekday crockery,

The stack of grocery,
And the shack of cutlery,

The ardent worker,
And the workforce docker,

Ready to take all the failure,
But I am not a loser,

I know it's a phase,
But life's become a race,

I know I have to be skeptical,
And be adaptable,

I adore this with ultimate vanity,
Because this is life's beauty.

I can't be none of thee,
So I adore being me!

Wednesday 2 September 2020

निराला



उसके चंचल चेतन में, छोटे से मन के उपवन में,
अनेक सवाल उठते होंगे, अद्भुत खयाल आते होंगे,

ना जाने क्या सोचता होगा, क्या उसको समझता होगा,
विचित्र दुनिया का हर कोण होगा, विचार वृद्धि का वेग होगा,

पेड़ पौधे उपवन आंगन पहेलियों की कड़ियाँ,
सड़क पर दौड़ती गाड़ियां, पशु पक्षी की किलकारियां, अचरज की होंगी झड़ियाँ,

भाषा और शब्दों की श्रृंखला में टटोलता होगा,
वो कभी अपरिचित अनोखी कहानियां,

क्रोध क्लेश का भावावेश, 
क्या समझे वो करना द्वेष,

ना हंसी ठिठोली करना आये, उसको ना आये परिहास,
कपट विषाद निरीह निराला ना जाने वो त्रास,

किसका धन और कैसी माया,
रिश्तों का बंधन है किसने बतलाया,

ना देव दानव को वो पहचाने, ना कीर्तन भजन जाने
वो बैरागी,
सरल चित्त से करता विश्वास, विशुद्ध उसका मन अनुरागी,

पूजा अरज से ना साधे काज वो निस्वार्थ,
प्रतिफल और प्रतिकार है विचार निरर्थ,

सदैव रहता है निश्छल निर्मल नदी सा वह 
उत्साहित ,
असीम हो कर छलकती उत्सुकता की गागर,

क्या अपना क्या पराया कैसे रक्त का कौन है जाया,
जिसमे उसने प्रीति देखी मनोवेग ले वो मुस्काया |




Thursday 16 April 2020

कागज़-ए-ख़ाली


मुद्दतों में उठायी कलम हाथों में, 
देख कागज़-ए-ख़ाली हम खो गए,

लफ़्ज़ों के आईने में देख ख़ुदा को,
ख़ुद ही की मौसिकी में मशगूल हो गए,

मन को तराशा बेबाक़ अल्फाज़ो में, 
कांटे भी फूल हो गए,

एक बूंद गिरी स्याही यूँ दवात से,
फिर छिपे सारे राज़ गुफ़्तगू हो गए,

क्यूं ना करें इन पन्नों से बातें,
ये ही है जो रूठा नहीं करते,

स्याही की छाप से जब पन्ना रंग जाता है,
मन से निकला हर लफ़्ज़ कागज़ पर रम जाता है,

बोल उठते हैं शब्द, जब ये कागज़ हवा में फड़फड़ाता है,
इत्मिनान देता है कागज़ का टुकड़ा जब मन भर आता है,

एक कहानी और कहानियों में कई कहानी,
मन की उड़ान की रफ्तार लिख कर है दर्शानी,

दौड़ भाग में रहते व्यस्त करते हर दम काम काज,
छोड़ के ये सब मद मस्त हो जाते हैं आज।

बुनते है आज ग़ज़ल सुहानी या कोई कहानी,
बातें जानी या अनजानी जो है हमें दुनिया को सुनानी।

Sunday 22 March 2020

फ़ुर्सत



चलिए कागज़ पर कुछ अल्फ़ाज़ लिखते हैं
धरती जो कर रही आराम उस पर साज़ लिखते हैं,
आश्चर्य में पड़ गया विज्ञान,
प्रकृति ने किया वो संग्राम,


आदमी आदमी की मौत का हो रहा कारक है,
घोर कलियुग का ये आग़ाज़ दिखता है,
प्रकृति के प्रक्षालन का ये संयोग सच्चा है,
दूरियां बढ़ने का योग अच्छा है,


देख लो मोबाइल टीवी या अखबार,
प्रवचन का लगा है अम्बार,
हाथ धोएं, किसी को न छुएं, बुखार ना होये,
ख़ुद की बनाई जेल में गुम होये,


जीवन मे नहीं बस सिनेमा, मॉल और पार्टी हॉल,
फुर्सत भरे दिन रात मिलते कहाँ है हाल फिलहाल ,
बच्चों को घर के काम का आनंद सिखलाये,
Playstation और iPad को दूर हटाएं,


क्यूं ना आज अपने शौक फरमाएं,
परिवार में किस्से कहानियों की चौपाल बैठाएं,
अब मौका मिला है तो फायदा उठायें,
कुछ लम्हें अपनों के साथ बिताएं |

Friday 12 July 2019

Happy Half Birthday Divit


We never knew,
Your delicate touch,
Will make us love you so much,


We never knew,
You will make our days shorter and nights longer,
Our clothes shabbier and life happier,


We never knew,
Those intial feelings of scare would turn into overwhelming joy,
And you will be our favorite toy,


We never knew,
The innocence in you will steal our hearts,
And with you we will begin our lives from the start,


We never knew,
How fast the days will go,
And we will enjoy seeing you grow,


We never knew,
Secretly we wish you stay a tiny baby forever,
And amaze us every moment forever!


Happy Half Birthday Divit

Friday 12 April 2019

My Little boy



My little boy,
One day you will tower me,
And become smart and clever,

One day these moments may fade,
You will become a man,
And have your own priorities,

One day you will have a life of your own,
A family to call your own,
And I will be gone,

But till then,
I will continue to nurture you,
And to care for you,

Till then,
I will bask in the sleepless nights,
Begging you to sleep and miss you when you might,

For the world you are just 3 months old,
But for me you are already 12 months old,
3 months out and the rest untold,

For the world you are a toy,
And they love you when you give joy,
And back to the mother when you are a crying boy,

When I see you learn every other while,
When your little heart beats against mine,
I feel being on cloud nine,

When I see you grin innocently through my scoldings,
And your little palms enclosing my fingers,
My merriment lingers,

The scars on my body would always remind me,
that every part of you was someday a part of me
And how you arrived and we survived,

The scars on my body may never heal,
But my love for you would never seal,
Because, my little boy, you and I were connected by the umbilical.

Friday 9 February 2018

रविवार


अब तो हर वार है सोमवार,
सुबह से करते हैं शाम का इंतज़ार,

लड़कपन के वो दिन थे ख़ुशगवार,
आता था एक दिन कहते थे उसे रविवार,

साईकल पे पीछे बैठने का आनंद था अपार,
सुबह उठ के हो जाते थे हम तैयार,

मोगली, रंगोली और देखते चित्रहार,
चंद्रकांता, तरंग और कृष्णा लगते त्योहार,

चंपक और चाचा चौधरी थे मज़ेदार,
मिट्टी की गुल्लक तोड़ने का इंतज़ार,

होमवर्क देख कर आ जाता बुख़ार,
लगता अब जल्दी बड़े हो जायें यार,

बरसात में कागज़ की नाव बनाना,
सितोलिया और साँप सीढ़ी से मन बहलाना,

दोस्तों संग लुका छुपी खेलना,
कट्टी करना फिर एक हो जाना,

गली में क्रिकेट खेलना,
आउट हो जाने पर नोंक झोंक करना,

रविवार कहो या संडे उसे कहना,
बचपन चला जाए बचपना नहीं खोना।

Wednesday 31 January 2018

मोबाइल


झुके रहते है सर आजकल हर पल,
लगता है सबका ख़ुदा बदल गया है,

हाथ जोड़े है हर कोई शान से,
प्रार्थना का ये नया ज़रिया निकल गया है,

बातें अब होती कहाँ है आपस में जनाब,
कमरे में हर व्यक्ति चैटिंग से बहल गया है,

मिल आये दुनिया से ऑनलाइन अभी अभी,
अपनों से मिलने का वक़्त बंट गया है,

गिल्ली डंडा खेलना ना जाने ये पीढ़ी,
बचपन अब सेल्फी स्टिक में जो अटक गया है,

कागज़ की कश्ती कहाँ तैरती अब बरसात में,
मोबाइल पर उंगलियां दौड़ाने में जो मन भटक गया है |

(Disclaimer: This post does not intend to harm, defame, or hurt the sentiments of any person, gender, religion, political party, news channel, religious belief, god or to whomsoever it may concern. I sincerely apologize in advance if it is so.)

Monday 29 May 2017

हीरा



नाज़-ओ-हिफाज़त में थे अपने शहर की गलियों में,
तिजोरी में तो सोना भी पीतल हो जाता है,

रखे कदम जो चौखट के बाहर तो समझा,
तराशे जाने पर तो कोयला भी हीरा बन जाता है।

Wednesday 17 May 2017

खोया हुआ खिलौना और टूटी हुई पेंसिल

छत पर बिछी जब दरी होती थी,
चाँद के पार एक परी होती थी,

ग़मो की गठरी का बस इतना था बोझ,
एक खोया हुआ खिलौना और टूटी हुई पेंसिल होती थी,

कट्टी और सॉरी का सिलसिला होता हर रोज़,
रिश्तों के सौदे कि गुफ़्तगू इतनी सस्ती होती थी,

प्रतिस्पर्धा यूँ शुरू और ख़त्म होती थी,
जब कागज़ की नाव से रेस दोस्तों संग होती थी,

खाली थे हाथ फिर भी ऊँची उड़ान होती थी,
जेब में भरी एक रंगीन तितली होती थी,

कितनी सरल वो ज़िंदगी होती थी,
टूटी गुल्लक से पायी जब चंद सिक्कों कि अमीरी होती थी,

गर्मी कि छुट्टियों में होता शाम का इंतज़ार,
बर्फ़ के लड्डू कि मिठास ऐसी मोहक होती थी,

क्लास में पूछती जब टीचर क्या बनना है,
पायलट और हीरो कहते हुए चहरे पर चमक होती थी,

ऊंची लगती जब मंदिर की घंटी थी,
बड़े होने की बड़ी जल्दी होती थी,

कैसे लौट आयें वो लड़कपन के दिन,
जब सुबह के बाद रात नहीं शामें भी होती थी |

Sunday 14 May 2017

क्या तोहफ़ा दूँ तुम्हें माँ



वो ख़फा़ हो फिर भी दुलार देती है,
माँ जुदा हो फिर भी प्यार देती है,

हमारी हर भूल को भूला देती है,
वो माँ ही है जो हमें रोज़ दुआ देती है |

माँ वो है जिसने हमें जीवन दिया है और जिसने अपना जीवन हमें दे दिया है | बहुत विचार किया परन्तु इसके समक्ष कोई भी उपहार तुच्छ प्रतीत हुआ | इसलिए कुछ शब्द ही पिरो दिए इस कविता के रूप में |


क्या उपहार दूँ तुम्हें मैं,
तुमने जीवन दान दिया हैं माँ।

मुस्कान होठों पर सदा सजाये,
तुमने हर बलिदान दिया है माँ।

तुलना कैसे करूँ तुम्हारी,
तुमसा कहाँ है कोई माँ।

चाहे तुम हो रूठी हमसे,
चिंता फिर भी करती माँ।

कहा जगत ने जपो हरि भजन,
मैंने केवल कह दिया "माँ"। 

क्या उपहार दूँ समझ ना आये,
शत-शत नमन है तुमको माँ।

Monday 17 April 2017

स्याही


मुद्दतों में उठायी क़लम हाथों में, देख कागज़-ए-ख़ाली हम खो गए,
लफ़्ज़ों के आईने में देख ख़ुदा को, ख़ुद ही की मौसीक़ी में मशगूल हो गए |

मन में तराशा बिखरे अल्फाज़ो को, कांटे भी फूल हो गए,
एक बूंद स्याही गिरी दवात से, छिपे सारे राज़ गुफ़्तगू हो गए |