Sunday 16 July 2023

जड़



कुछ समय पहले मैंने एक कहानी सुनी थी। आज उसे अपने शब्दों में लिख रही हूं।

एक गांव में एक पिता अपने बेटे और बहु के साथ रिटायरमेंट के बाद खुशहाल जीवन व्यतित कर रहे थे। बेटा और बहू उनका खूब सम्मान करते। कुछ माह में उनके दादा बनने का संयोग था। वे अपनी गर्भवती बहु की सेहत और आराम का पूर्ण ध्यान रखते थे।

एक बार पिताजी शाम को मित्रों के साथ टहल कर घर आये। उनका बेटा आफिस से लौटने के पश्चात हाथ मुँह धो कर बैठा था। बहु ने गरमा गरम चाय का कप देते हुए पिताजी से पूछा कि भोजन में क्या लेंगे। पिताजी ने कहा "बहु कुछ देर बैठो भोजन की क्या जल्दी है! " भावी माता पिता से पूछा कि तुम अपनी आने वाली संतान का किस प्रकार पालन करोगे। बहु ने कहा - "पिताजी हम उसे बहुत लाड़ प्यार से पालेंगे, सदा उसका ख्याल रखेंगे।" बेटे ने कहा -" हाँ हाँ पिताजी हम उसे किसी चीज़ की कमी नहीं होने देंगे। उसे जीवन का हर सुख देंगे। नाज़ों से पालेंगे।" पिता के चहरे पर मुस्कान आ गयी किन्तु वे मौन रहे। बहु बेटा आश्चर्य में थे लेकिन कुछ बोले नहीं।

अगले दिन पिताजी दो पौधे घर ले आये। बहु बेटे को बुला कर कहा, "ये लो तुम्हारे लिये मेरी ओर से तोहफ़ा, एक पौधा मैं रखूंगा एक तुम रखो। इसे बगीचे में लगा दो।" दोनों सोच में पड़ गए कि पिताजी की इसके पीछे क्या मंशा है, अपना पौधा लिया और उसे बगीचे में लगा दिया।

वे दोनों अपने पौधे का बहुत ध्यान रखते, रोज़ पानी देते, खाद डालते, उसे सूखने ना देते, उसके बड़े होने पर खुशी मनाते और अपनी इस सफ़लता पर गर्व करते। वहीं पिताजी का पौधा रूखा सूखा रहता, वे उसे काफ़ी दिनों तक पानी भी नहीं देते। दोनों को बड़ा आश्चर्य होता।

एक रात बहुत वर्षा हुई और तूफान आया। उनका पौधा जड़ से निकल कर अलग हो गया था और टूट कर एक कोने में पड़ा था। अगले दिन उन्होंने जब ये देखा तो बड़े दुखी हुए। सोचा कि हमने इसकी देखभाल में ऐसी क्या कमी रखी जो इसके ये हाल हुए। वहीं पिताजी का पौधा टस से मस न हुआ। उन्होंने पिताजी से इसका कारण पूछा।

पिताजी ने बड़ा सुंदर जवाब दिया - "मैंने अपने पौधे को स्वावलंबी बनाया। मैं उसे कम पानी देता था और सीमित देखभाल करता था। इससे उसने अपनी जड़ों को अंदर तक बढ़ा लिया और ज़मीन द्वारा ही पानी लेता था। इससे आज वह स्वस्थ और स्थिर है। तुमने अपने पौधे के संरक्षण में इतने प्रयत्न किए की उसे कमज़ोर बना दिया। तुमने अनजाने में उसे ख़ुद पर निर्भर कर दिया और वो ज़रा भी तकलीफ़ ना सह सका। उसी प्रकार संतान को भी हम प्रेमवश मानसिक, आर्थिक और शारीरिक रूप से कमज़ोर बना देते हैं। हम उसे सारे सुख देने की इच्छा से और जीवन मे सब आराम देने के लोभ में दुर्बल कर देते हैं। हम अगर उसके साथ कठोर नहीं होंगे तो भविष्य में यह उसके लिए हानिकारक होता है। अब शायद तुम समझ गये होंगे मेरा पूर्ण उद्देश्य। "






Friday 31 March 2023

हर घर शबरी







सुबह उठी, बेटे के स्कूल का लंच बॉक्स बनाया,
सोच चख लूं, मिर्च ज़्यादा हुई तो भूखा लौट आएगा,

पति जॉगिंग कर के घर आये, संतरे का जूस बनाया,
सोचा चख लूं, कहीं खट्टा तो नहीं बना ,

दोपहर का भोजन बनाया, लगा दाल में नमक कम हो गया होगा,
सोचा चख लूं, कहीं सबको पसन्द ना आई तो,

बेटा स्कूल से वापिस आया, पकौड़े की फरमाइश करी,
बनाते हुए सोचा चख लूँ, ठीक से पका या नहीं,

शाम की चाय का समय हुआ, किसी को अदरक चाहिए किसी को शक्कर कम,
सबकी चाय थोड़ी थोड़ी चख लेती हूं, कहीं उनके मुँह का स्वाद ना बिगड़ जाए,

रात का भोजन जब बना, साथ मे सलाद भी काटा,
सोचा चख लेती हूं, कहीं फिर से कड़वा खीरा तो नहीं खरीद लायी,

सुबह बनी हुई खीर पति ने बड़े शौक से खाई, शाम को भी खाने वाले होंगे,
सोचा चख लेती हूं, कहीं गर्मियों की वजह से खराब ना हो गयी हो।

दोपहर में दही जमाने के लिए रखा था, कल सबको लस्सी पीनी है,
सोचा चख लेती हूं, कहीं खट्टा तो नहीं हो गया,


हमारे भारतीय परिवारों में हर घर में माँ, पत्नी, बहु शबरी ही तो है। जो घर के सदस्यों के भोजन को पहले बेर की तरह चख लेती है। इससे वह आश्वस्त हो जाती है कि उसका परिवार सुरक्षित, स्वस्थ और भोजन से प्रसन्न है। और यही विश्वास परिवार जनों को अपनी शबरी पर है।

यह कविता उन समस्त शबरी रूपी महिलाओं को समर्पित।