कब तक सबके लिए जिया करोगी,
ज़िन्दगी अपने हिस्से की कब चखोगी,
बच गया तो खा लिया वरना ख़ुद के लिए सलाद कौन काटेगा,
सेहत तुम्हारी भी है ज़रूरी, ये कोई न तुम्हें समझायेगा,
याद रखती हो हमेशा, की कोई पकौड़े नहीं खाता, कोई सेब से मुंह चुराता,
फिर कैसे भूल जाती हो ख़ुद अपनी पसंद नापसन्द,
काटो तरबूज़, डालो अंगूर,
अपनी भी थाली सजाना ज़रूर,
परोसती हो बड़े उत्साह से सबको भोजन,
ख़ुद की भी लगाओ एक प्यार वाली थाली,
सबकी सेहत का रखती हो ध्यान,
क्या आज भी ना रखा ख़ुद की दवाई का मान,
कोई नहीं है आज चाय पीने वाला,
ये सोच कर न लगाना ख़ुद की चाह पर ताला,
सुबह सबसे पहले और रात को आखरी तक काम में मगन,
कभी तुम भी sunday को पढ़ो अखबार करो आराम,
दौड़ते भागते ठहरा करो, कभी चैन से बैठा करो,
ख़ुद को सवारा करो, आईने में ख़ुद को निहारा करो,
कब तक सबके लिए जिया करोगी,
ज़िन्दगी अपने हिस्से की कब चखोगी।
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