Sunday 14 May 2017

क्या तोहफ़ा दूँ तुम्हें माँ



वो ख़फा़ हो फिर भी दुलार देती है,
माँ जुदा हो फिर भी प्यार देती है,

हमारी हर भूल को भूला देती है,
वो माँ ही है जो हमें रोज़ दुआ देती है |

माँ वो है जिसने हमें जीवन दिया है और जिसने अपना जीवन हमें दे दिया है | बहुत विचार किया परन्तु इसके समक्ष कोई भी उपहार तुच्छ प्रतीत हुआ | इसलिए कुछ शब्द ही पिरो दिए इस कविता के रूप में |


क्या उपहार दूँ तुम्हें मैं,
तुमने जीवन दान दिया हैं माँ।

मुस्कान होठों पर सदा सजाये,
तुमने हर बलिदान दिया है माँ।

तुलना कैसे करूँ तुम्हारी,
तुमसा कहाँ है कोई माँ।

चाहे तुम हो रूठी हमसे,
चिंता फिर भी करती माँ।

कहा जगत ने जपो हरि भजन,
मैंने केवल कह दिया "माँ"। 

क्या उपहार दूँ समझ ना आये,
शत-शत नमन है तुमको माँ।

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