Thursday, 3 March 2022

मैं ही तो हूँ



तुम्हारे जीवन का आधार हूँ मैं,
कभी बेटी तो कभी माँ हूँ मैं,

मुझसे ही तुम्हारी भक्ति पूरी है,
भूलना नहीं शिव की शक्ति हूं मैं,

कृष्ण की बांसुरी पर नृत्य करती गोपी हूँ मैं,
क्रोधित हो कर महिषासुर मर्दिनी भी बनी हूँ मैं,

अहिल्या बन हुई पत्थर, द्रौपदी बन लगी दाव पर,
सीता बन समायी भूमि में, स्वर्ण सी निखरी हर अग्निपरीक्षा में,

गुड्डे गुड़ियों के खेल रचाती तुम्हारे आंगन में,
मुझसे ही तुम्हारा कन्यादान का पुण्य सम्पूर्ण है,

सुनी है मुझ बिन कलाई तुम्हारी,
रक्षा करने का वचन मुझ बिन अधूरा है,

नवजीवन की नन्ही कोपल को सवारती अपने अंदर मैं,
मेरे उस असहनीय दर्द के बिना तुम्हारी पहली मुस्कान अधूरी है,

खरोच लगी जब घुटनों को तुम्हारे,
एक आंसू मेरी पलकों के कोने से भी उतरा है,

काले मोती पहने गले में तुम्हारे लिए,
मेरे सिंदूर ने लगाया तुम्हारी आयु पर पहरा है,

अन्नपूर्णा रूप में बहाती पसीना रसोई में,
तब जा कर भोजन का चटकारा तुमनें लिया है,

दुःख के हर आँसू में तुम्हारे,
कतरा खून का मेरा भी बहा है,

बिना मेरे तुम्हारा मकान कभी घर ना बन पाता,
जिसे जन्नत कह कर विश्राम तुमने किया है,

निश्छल निर्मल निरन्तर बहती मैं जीवन की धारा में,
निर्भीक हो कर विभिन्न रूपों में रहती इस धरा में।

Wednesday, 2 February 2022

सर्दियों का भोजन - परम् सुख




सर्दियों के मौसम में खाने का आनंद कुछ ऐसा है...

उस पीली मक्के की रोटी से जब सरसों के साग को उठाते हैं, क्या गज़ब कलर कॉम्बिनेशन नज़र आता है,

गर्मा गरम गोभी के पराठों पर तैरता हुआ मक्ख़न मन को जो लुभाता है, स्वाद की इन्द्रियों को वो जगाता है,

अदरक वाली चाय में जब काली मिर्च पड़ जाती है, बिस्कुट भी बड़े प्रेम से उसमे डुबकी लगता है,


हरे चने की कचोरी पर जब पढती है खट्टी मीठी इमली और ताज़े धनिया की तीख़ी चटनी, परम् सुख वो कहलाता है,


गर्म जलेबी से तरती हुई चाशनी, उसके केसरिया रंग को निखरती है और हमारी आँखे उसे निहारती है,


आलू बड़े में से जब नाज़ुक से मटर छुप कर हमें देखते हैं, लगता है मानो हमें पुकार रहे हो,


गाजर का हलवा भी कहाँ पीछे रह पाता है, दूध मलाई , मेवे में सिकाई और वो सौंधी सी खुशबू जीवन का सार बताता है,


तिल तिल कर बढ़ते ठंड के दिनों में तिल गुड़ की मिठास मुँह में घुल कर स्वास्थ्य बढ़ा जाती है,


केसर बादाम का दूध जब एक ग्लास से दूसरे ग्लास में और फिर पहले ग्लास में मिलाया जाता है, मन कहता है उसकी नज़र उतारी जाना तो बनता है,


गर्मा गर्म कुरमुरे मसालेदार गराडू जब प्लेट मे इठलाते है, हमारे मन को मंत्र मुग्ध कर जाते है,


सर्दियों मे खाने के जो आनंद आते है उसका कोई तोड़ नहीं, जीवन के परम सुखों मे सर्वप्रथम है यही।

Sunday, 14 November 2021

बचपन




याद आता है बचपन का वो फ़साना

ना रोने का कारण ना हंसने का बहाना,


कागज़ की नाव बना कर बारिश में नहाना,

ठंड में ढूंढना स्कूल ना जाने का बहाना,


भाई बहन के झगड़े में रिमोट का टूट जाना,

"super mario" को टीवी में कुदाना,


दीवाली के पटाखे बीस दिन पहले से जलना,

होली पर पानी की पिचकारी में भी आनंद था सुहाना,


ना सुबह की खबर, ना शाम का ठिकाना,

थक कर स्कूल से आना, फिर भी बाहर खेलने जाना,


ना youtube की swiping ना PS 4 के बटन दबाना,

चित्रहार, महाभारत, तरंग के इंतज़ार में चहकना,


छोटी सी साईकल पर फेरी लगाना,

गुड्डे गुड़िया और गिल्ली डंडे का खेल लगता सुहाना,


नया पेंसिल बॉक्स आने पर चार दिन खुशियां मनाना,

स्कूल में बर्थडे पर क्लास में टॉफ़ी बांटना,