Turning your talent into profession can turn your signature into an autograph!
Friday, 3 October 2014
Thursday, 2 October 2014
प्रिय मच्छर
वो गुनगुनाना तुम्हारा, वो मीठी सी तान,
छु लेती थी मेरे कानों के तार सच मान,
आते थे तुम जब नजदीक,
मांगती थी मैँ नींद कि भीख,
सुनाते थे तुम नित नए गीत,
याद है तुम्हारा वो मधुर संगीत,
जगा देते थे गहरी नींद से मुझे,
तब ही आता था चैन तुझे |
अब क्यूँ समझ ना आती आहट तुम्हारे आने की,
सज़ा कैसे दूं तुम्हें चुपके से काट जाने की,
डंक मार कर चले जाते हो, मन में ही मुस्काते हो,
रंगे हाथों पकड़ु कैसे तुम तो उड़ जाते हो,
हो गए अब तुम भी चतुर चालाक,
आ जाओ बस एक बार मेरे हाथ,
किया है मैंने तुम्हे रक्तदान,
उफ्फ... क्यूँ बन रहे तुम अनजान !