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Monday 10 April 2017

मैंने खुशियां ख़रीद ली


शहर की जगमग छोड़ कर मैंने उगते सूरज की रोशनी ख़रीद ली,
सिनेमा का विकर्षण छोड़ कर मैने किताब के पन्नो की खुशबू ख़रीद ली |

अपेक्षा का आसमान छोड़ कर मैंने प्रतीक्षा की ज़मीं ख़रीद ली,
बचपन का दामन छोड़ कर मैंने बचपने की अदाएं समेट ली।

रुई का गद्दा त्याग कर मैंने मां की गोद सहज ली,
दिन की दौड़ धूप त्याग कर मैंने सांझ की छांव सहज ली |

कोलाहल की ध्वनि नकार कर मैंने एक ग़ज़ल ख़रीद ली,
मोबाइल पर दौड़ती अंगुलियों को विराम कर मैंने वक़्त की घड़ियां ख़रीद ली।

सुविधाओं की अनंतता का बोध कर मैंने सुकून की दो रोटियां ख़रीद ली।
ख्वाहिशों को थोड़ा कम किया मैंने और खुशियां ख़रीद ली।

Wednesday 4 January 2017

नज़र


नज़र नज़र में नज़रिया बदल जाता है,
एक नज़र में जीने का जरिया बदल जाता है |

- Random Thought by me

Sunday 11 December 2016

A Poetic Endeavor : Seasons of Heart


Fading sunshine and waning moon,
Subtle is the warmth of winter bloom,
O night! Thee fade slowly.

Heart shells the pain out,
Tear drops like rain seldom ever end,
Wait, for the bliss is calling!

Spring comes calling dear Darling,
Happiness blooms along and the fragrance clinging,
For love we share unending,

A melancholy drop of water,
In arms of thunder is born anew,
Dreaming to green the greener.

Sunday 9 October 2016

तो फिर तू क्यूँ उदास है


तू सशक्त है समर्थ है, तो फिर तू क्यूँ उदास है,
तू गिर ज़रा संभल ज़रा, क्यूँ हो रहा हताश है,

तू रक्त है विरक्त है, तुझी से वक़्त की आस है,
तू जलज है समुद्र तू, बुझा दे जो भी प्यास है,

जो समझे ना तेरी कदर, छेड़ दे तू इक ग़दर,
ये विश्व तेरा सर्वस्व है, अकेला तू फिरे किधर,

पाषाण जो हो राह में, ना पथ पृथक तू करना ,
आँधियों की गति से डर के, ना तू चाह छोड़ना,

हो दूर ग़र अरुण किरण, उसकी राह तू ताकना,
जो तन से तू थके अग़र, ना मन से कभी तू हारना ।

Monday 30 November 2015

चूड़ियाँ

मैंने लोगो को कहते सुना है, हाथों में चूड़ियाँ पहन लो | इसका अर्थ है कि आपमें साहस कि कमी है और चूडि़यां पहनने वाले हाथ कमजोर है | किन्तु मैं इससे सहमत नहीं | एक भिन्न दृष्टिकोण से चूड़ियों पर उल्लेख-

बजती हैं माँ कि चूड़ियाँ,
रसोई में मेरे लिए स्वादिष्ट भोजन पकाने के लिए,
मंदिर की घंटी बजा कर मेरे लिए दुआ का हाथ उठाने के लिए |

बजती है माँ कि चूड़ियाँ,
मुझे थपकी दे कर सुलाने के लिए,
मुझ पर आशीष बरसाने के लिए |

बजती रहे ममता भरी ये चूड़ियाँ ||

बजती है बहन कि चूड़ियाँ,
मुझे सता कर अपने पीछे दौड़ाने के लिए,
मुझ से मीठी नोक-झोंक में कमर पर हाथ रख धौंस जमाने के लिए |

बजती है बहन कि चूड़ियाँ,
मेरे माथे पर चंदन का टीका लगाने के लिए,
मेरे हाथों में राखी सजाने के लिए |

बजती रहे शरारत भरी ये चूड़ियाँ ||

बजती है पत्नी कि चूड़ियाँ,
प्रतीक्षारत हाथो से दरवाज़ा खोलने के लिए,
मुझे आलिंगनबद्ध कर मनुहार जताने के लिए |

बजती है पत्नी कि चूड़ियाँ,
मेरी पसंद के पकवान बनाने के लिए,
मेरे घर आँगन को सँवारने के लिए |

बजती रहे प्रेम भरी ये चूड़ियाँ ||

बजती है बेटी कि चूड़ियाँ,
मेरे घर को अपनी किलकारियों से सजाने के लिए,
नन्हे हाथों से गुड्डे गुड़ियों संग खेलने के लिए |

बजती है बेटी कि चूड़ियाँ,
ससुराल जाते हुए छुप कर आँसू पोंछेने के लिए,
दौड़ते हुए मेरे सीने से लग जाने के लिए |

बजती रहे मासूमियत भरी ये चूड़ियाँ ||

Sunday 9 August 2015

Happy Ending?


All my life I craved for an Happy Ending,
As I grew old I would always wait for what is never ending,

Golden moments passed by which were very rare,
It was me who gave them hardly any care,

Now I wonder if I could get those moments all over again,
I've decided never to mourn in any pain,

The true wisdom dawned upon me sooner or later,
It's not the end, but the whole story that is dear.




Sunday 7 June 2015

दर्जन भर कॉपियां


याद आया आज स्कूल वाला जून जुलाई का महीना,
ख़त्म होती थी जब गर्मी की छुट्टियां,
पापा के साथ लाते दर्जन भर कॉपियां,
लाते बड़े नाप की नयी नवेली यूनिफॉर्म |

नया बस्ता नयी बोतल,
कॉपियों के पसंदीदा लेबल,
चार रंगों वाला पेन और अप्सरा की पेंसिल,
बारिश में स्कूल जाने कि होती चहल पहल |

सौंधी सी नयी क़िताबो की महक,
दोस्तों से मिलने की अभिलाषा की चहक,
छुट्टियों के किस्सों वाली बातों की खनक,
नयी क्लास में साल बिताने की ललक |

स्कूल बस में साथियों का शोर,
 सुबह असेंबली में प्रार्थना कि कतार,
करते हर रोज़ रविवार का इंतज़ार,
देखते दूरदर्शन पर तरंग और चित्रहार ||
-----------------

अब होता है हर महीना एक समान,
ना किताबें ना उनके लेबल,
बस कीबोर्ड पर दौड़ती उंगलियां और ऑफ़िस की टेबल,
ना बजती छुट्टी की घंटियाँ |

ना भोर कि ख़बर ना डूबते सूरज पर नज़र,
अब कब होती है सहर और ढलता है दिन किस पहर,
ना ख़ुशनुमा मौसम, ना त्यौहार सा रविवार,
ना यूनिट टेस्ट का भार, ना टीचर की डांट का शिकार ||

Monday 6 April 2015

शख़्सियत


इस कदर लोगो को हँसाना मेरी आदत ना समझो,
हर क़दम रिश्ते बनाने की इसे शिद्दत ना समझो |

खुदगर्ज़ी है मेरी और मुझे खुदगर्ज़ समझो,
मेरे जनाज़े में चलने वालो की तादात बढ़ाने की कोशिश समझो ।|

Sunday 29 March 2015

ना सोचा है


किस ओर चलूं ना सोचा है,
किस ठोर थमु ना सोचा है,

चलते रहूँ या राह चुनूं,
मंज़िल कि तलाश करूँ,
या खड़ी रहूँ चौराहों पे,
किस ओर बढ़ूँ ना सोचा है |

आसमां को भर लूँ मुट्ठी में,
या छोड़ दूँ खुली हाथ कि लकीरों को,
ज़िद करूँ क्या लड़ने कि,
क्या हाल चुनूं ना सोचा है | 

दिल तोड़ चलूँ या मन जोड़ चलूँ,
रुख मोड़ चलूँ या जग छोड़ चलूँ,
दो कदम चलूँ या दौड़ चलूँ,
या ख्वाब चुनूं ना सोचा है ||

Monday 19 January 2015

I am..


They call me elegant, they call me pretty,
They call me canny, they call me witty,
I tell I do not fit that fashion model's size,
They say I am telling lies,
The curve of my waist and the bulk of my hips,
The charm on my cheek and the towing gravity of my eyes,
This is all that appeals the world's fancies,
I am exceptionally a woman, or merely a woman.

I walk into the room, just as cool as you please,
I have the tolerance to bear the obnoxious blames,
I have the valor to invade their reins,
I have my stand, and I seldom bend,
I never weep in the solitude, unlike the trend,
My power is exceptional, that's how I am rational,
I am exceptionally a woman, or merely a woman.

Saturday 3 January 2015

ना सीखी होशियारी...

होशियारी मिलती नहीं बाज़ार में,
समझदारी बिकती नहीं दुकान पे,
मिले ग़र दुनियादारी का ठेकेदार,
हम होंगे उसके पहले खरीददार|


Thursday 1 January 2015

नव वर्ष की शुभकामनाएँ

साल तो बहुत आए बहुत गए,
आशा है ये साल बीते हुए हर साल से खूबसूरत हो जाए,
लिए सभी के प्रति सौहाद्र और सुकून कि भावनाएँ |

सबका जीवन बेहतर स्वास्थ्य और हर्ष से भर आए,
पूर्ण हो हर जन की मनोकामनाएँ,
नव वर्ष की सबको शुभकामनाएँ |

Saturday 27 December 2014

बेगुनाह



उसे वतन सरहदों ने मुक़र्रर करवाया,
उसे मज़हब परिवार ने मंसूब करवाया|

उस बेक़सूर मोहरे को जिंदा से मुर्दा बेरहम जहान ने बनाया,
जब उसे इंतिक़ाम-ओ-दहशत का शिकार दहशत-गर्दो ने बनाया||


Sunday 23 November 2014

The Sound of the Silence


The sound of the silence,
Falling as a shattered glass on the floor,
Into the loneliness of the empty hall,
Prickling on every step like sharp nails under the foot,

The sound of the silence,
Crept like a venomous snake's mighty crawl,
Echoed into a bundle of silent rolls,
Collapsed amongst self like adamant snow balls.

Sunday 9 November 2014

खामोशी में भी शोर सा है


है ये ढलता हुआ सूरज, मगर दिखता सुनहरी भोर सा है,
खामोशी में भी शोर सा है,

है ये धुँधला कोहरा, मगर दिखता ठंडी ओस सा है,
खामोशी में भी शोर सा है,

है ये मज़बूत बंधन, मगर दिखता कच्ची डोर सा है,
खामोशी में भी शोर सा है|

Thursday 30 October 2014

लम्हा

ये लम्हा भी यूँ ही बीत जायेगा,
अगला लम्हा भी कौनसा साथ निभायेगा,
भर लो हर लम्हा अपनी बाहों में,
क्या पता, कौनसा लम्हा आखरी कहलायेगा ||

Saturday 18 October 2014

फिर से दिवाली आयी है


फिर से दिवाली आयी है,
फिर बाज़ार में रौनक छायी है,
फिर माँ दीये जलायेंगी,
फिर पापा सीरीज़ लगायेंगे,

फिर से दिवाली आयी है,
फिर रातें दिन से ज़्यादा रौशन हो जायेगी,
फिर घर आँगन में रंगोली सजेगी,
फिर किचन से घी कि खुशबू हर कमरे में फैल जायेगी,

फिर से दिवाली आयी है,
फिर नए कपड़ों कि महक मन को बहलायेगी,
फिर नन्हे शैतान पटाखे-फुलझड़ी जलायेंगे,
फिर पकवान और तोहफे ख़ुशियाँ लायेंगे

Sunday 12 October 2014

लफ्ज़-ओ-अल्फाज़


कुछ खयाल और कुछ हक़ीक़त मिलते हैं जमाने में,
हम बयान करते हैं उन्हें अपने रह-ओ-रस्म से अफसाने में,

ग़ुल-ए-बाज़ार में महकता है हर इक गुलाब जैसे,
शाम-ओ-सुबह चलती है हमारी ये कलम वैसे,

नज़्म-ओ-मज़मून या कभी कभार साज़-ओ-तराने में,
उम्मीद है निगार हो इस मुसंफा के ज़खीरा-ए-अल्फाज़ में,

मुख्तलिफ ज़बान में लिखने कि आज़माइश करते हैं,
रहमत हो ख़ुदा कि तो पेश करते रहेंगे नई मोसिकि कयी बार ||


अपने  रह-ओ-रस्म - my way, ग़ुल-ए-बाज़ार - market of roses, नज़्म - poetry, मज़मून - articleनिगार - beautiful, मुसंफा - writer, ज़खीरा-  storage, मुख्तलिफ - various, ज़बान - languages, आज़माइश - trial, मोसिकि - composition


Saturday 4 October 2014

Like an Unsent Letter



Like an unsent letter, 
Like a blur solitaire, 
Like a wet sweater, 
Like walls so greater, 
The yonder the fairer. 

Like an ungrown meadow, 
Like a stubborn shadow, 
Like an unshot arrow, 
Like a wailing widow, 
Thou shalt shun the stark morrow 
















Thursday 2 October 2014

प्रिय मच्छर


वो गुनगुनाना तुम्हारा, वो मीठी सी तान,
छु लेती थी मेरे कानों के तार सच मान,

आते थे तुम जब नजदीक,
मांगती थी मैँ नींद कि भीख,

सुनाते थे तुम नित नए गीत,
याद है तुम्हारा वो मधुर संगीत,

जगा देते थे गहरी नींद से मुझे,
तब ही आता था चैन तुझे |

अब क्यूँ समझ ना आती आहट तुम्हारे आने की,
सज़ा कैसे दूं तुम्हें चुपके से काट जाने की,

डंक मार कर चले जाते हो, मन में ही मुस्काते हो,
रंगे हाथों पकड़ु कैसे तुम तो उड़ जाते हो, 

हो गए अब तुम भी चतुर चालाक,
आ जाओ बस एक बार मेरे हाथ,

किया है मैंने तुम्हे रक्तदान,
उफ्फ... क्यूँ बन रहे तुम अनजान !